TABIB KI BETI

                     ग़ज़ल


हसीं हैं मतला ग़ज़ल का तबीब की बेटी।

रदीफ मोजू ए चर्चा तबीब की बेटी।


सुकूने क्लब हमारा तबीब की बेटी।

है मुश्किलों मे सहारा तबीब की बेटी।


हसीन देखे हैं मैने जहां में लाख मगर।

हसीन तुमसा ना देखा तबीब की बेटी।


तुम्हारा दीद किए बीन सुकू नहीं मिलता।

ये हाल क्यों हैं हमारा तबीब की बेटी।


ये चांद तारे चमन सहरा नदियां झीलें शजर।

है सबका सब तेरा सदका तबीब की बेटी।


तुम्हारे हुस्न का और लहजे की नज़ाकत का।

है मेरे यारों में चर्चा तबीब की बेटी।


तुम्हारी मांगी हुई सब दुआएं रंग लाई।

लो हो गया मै तुम्हारा तबीब की बेटी।


तुम्हारे शहर में आकर एक अजनबी की तरह।

भटक रहा हूं मैं तन्हा तबीब की बेटी।


गले लगा के मुझे अपने हौसला बख्शो।

हूं रंजो गम का मै मारा तबीब की बेटी।


ग़ज़ल मुक्कमल हुई है तेरे तसव्वुर में।

तो दिल से शुक्रिया तेरा तबीब की बेटी।   


मरीज़े इश्क़ शजर है इलाज कर दो तुम

तड़प रहा है बेचारा तबीब की बेटी।

Comments