GAZAL SANAM

 हर एक लम्हा हैं दिल मेरा बे करार सनम।

चले भी आओ के हो खत्म इंतेज़ार सनम।


हवन नक हो के क्यों खाती हो बे सबब क़समें।

तुम्हारी बात पा है मुझको ऐतबार सनम।


तुम अपनी दोस्तों के दरमियां में ऐसी हो।

के जैसे गुल हो कोई दरमियाने खार सनम


दिलो दिमाग जीगर फिक्र हसरतें हमने।

लो पूरा जिस्म किया आप पर निसार सनम।


खुदा का शुक्र करो सुबह शाम क्योंकि तुम्हें

पसंद करते हैं सब मेरे रिश्तेदार सनम।


चलो हम इश्क़ की उन मंजिलों पा जा पहुंचे

हो बज्मे आश्की में अपना भी शुमार सनम।


कसम से बरसरे महफिल तुम्हारा कह कह कर।

मुझे चिड़ाते है सब देखो मेरे यार सनम।


खुश एक दूजे के हमराह देखकर हमको।

खुश होता होगा बहुत अपना किर दीगार सनम।


कलेजा फटता है इस बात से खुदा कसम

क्यों अपने इश्क़ में मजहब की है दीवार सनम।


हयात बख़्शो मुझे या मुझे कजा दे दो।

तुम्हारे हाथ में है अब ये इख़्तेयार सनम।


शिफा याफ्ता हो जाऊंगा मै बात सुनो।

दवा ना देके अगर तुम दो अपना प्यार सनम।


बहुत दिन हो गए अब लाओ वापसी दे दो।

हमारा आप पा जो बोसा है उधार सनम।


उठा के ले चलो मुझको लगा लो आंगन में।

मै एक शजर हूं समरदार साया दार सनम।

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