ZULFEIN GAZAL
हैं तजकिरे का सबब साहेबान में जुल्फें।
तेरी सवारूंगा में इत्मेनान में जुल्फें।
हैं जिस तरह मेरे हमसाए की ख़ुदा की कसम
नहीं मिली कही ऐसी जहान में जुल्फें।
सवाल आया था क्या है सबब घटाओं का।
मै लिख के आ गया बस इम्तेहान में जुल्फें।
गुलिस्तां चेहरा है हैं होंट ओं आंखें गुल उसमें।
लगा रहीं हैं मगर चांद शान में जुल्फें।
जो बोसा देके गईं थी हमारे चेहरे पर।
वो अब तलक हैं मुस्लसल ध्यान में जुल्फें।
हैं सबसे आला ओ सबसे जुदा ये है इल्लत।
मफहुम बन गईं सब शायरान में जुल्फें।
वो ख्वाब में मुझे कल बोसा देने आयी थी के
दीवार बन गईं हाए मियान में जुल्फें।
हूं रब से महवे दुआ दिलनशी की मेरे सदा।
शजर ख़ुदा रखे हिफजो अमान में जुल्फें।
SHAJAR ABBAS ZAIDI
हैं तजकिरे का सबब साहेबान में जुल्फें।
तेरी सवारूंगा में इत्मेनान में जुल्फें।
हैं जिस तरह मेरे हमसाए की ख़ुदा की कसम
नहीं मिली कही ऐसी जहान में जुल्फें।
सवाल आया था क्या है सबब घटाओं का।
मै लिख के आ गया बस इम्तेहान में जुल्फें।
गुलिस्तां चेहरा है हैं होंट ओं आंखें गुल उसमें।
लगा रहीं हैं मगर चांद शान में जुल्फें।
जो बोसा देके गईं थी हमारे चेहरे पर।
वो अब तलक हैं मुस्लसल ध्यान में जुल्फें।
हैं सबसे आला ओ सबसे जुदा ये है इल्लत।
मफहुम बन गईं सब शायरान में जुल्फें।
वो ख्वाब में मुझे कल बोसा देने आयी थी के
दीवार बन गईं हाए मियान में जुल्फें।
हूं रब से महवे दुआ दिलनशी की मेरे सदा।
शजर ख़ुदा रखे हिफजो अमान में जुल्फें।
SHAJAR ABBAS ZAIDI
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