gazal

में दास्तान तुम्हे इश्क की सुनाता हूँ
जो गुज़रा साथ में मेरे वो सब बताता हूँ।

है एक हसीन सी लड़की के जिससे शिददत से
में इश्क करता हूँ इज़हार कर न पाता हूँ।

खुदारा लिख दे उसे बस मेरे मुक़्क़दर में
दुआएँ मांगने मस्जिद में रोज़ जाता हूँ।

वो हूर है नही उसकी मिसाल दुनिया में
खुसुसियात में उसकी तुम्हे गिनाता हूँ।

लतीफ इतनी है यारो फ़क़त इसी डर से
बिखर न जाये यूँ छुने से हिचकिचाता हूँ।

वो मेरी पहली ग़ज़ल है यही तो इलत है
में उस को यारो सुबह शाम गुनगुनाता हूँ।

दवा में अपनी समझता हूँ उसके चेहरे को
जिसे में देख के दुःख में भी मुस्कुराता हूँ।

कोई तो नाता है गहरा बहुत के जिस के सबब
में आंखे मूंदुं तो खाबों में उसको पाता हूँ।

शियार आला है बस गुफ्तुगू का जिसके सबब
बनाना उस को शरीके हयात चाहता हूँ।

बुका है वो मेरा उस से हयात है मेरी
वो राह में न रुके उससे कहना चाहता हूँ।

सबब यही है के दुनिया में जो हयात है हम
वो मेरा और सुनो उसका में असासा हूँ।

जहाँ पा मजनू भी राँझा भी न गुज़ार सके
में बादे हिज्र वहा ज़िन्दगी गुज़ारा हूँ ।

में तुझ से होके जुदा यार शादी कर न सका
तू आके देख ले में आज भी कुवारा हूँ।

अजीब किस्सा मोहाबत का है शजर देखो
वो जब भी रूठती है में उसे मनाता हूँ।

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