Gazal

वो आ रही है किताबे लगाए सीने से 
तमाम शहर खड़ा है बड़े करीने से।

वो गोरे पाँव वो कॉलेज की सीढ़ियों का नसीब
उतर रही है परी आसमां के ज़ीने से ।

वो एक रोज़ जो कॉलेज न आए ऐसा लगे
के जैसे चाँद न निकला कई महीने से।





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